खैर, उन्होंने एक ‘प्रश्न मुझसे करा की’ मे बचपन से ही धार्मिक व्यक्तिओ के संगत में रहा हूँ, पूरा परिवार धार्मिक रहा है, इन्हा तक की जब नौकरी मिली तो असली हकदार ‘बाबा साहब’ को भूल कर में मन्दिर में जाकर पूजा-अर्चना करके उन लोगो को भोजन व पैसा दिया जिन्होंने शोषित समाज के शोषण में अपना शुरू से ही योगदान दिया है. आप जैसे मित्रो की वजह से इसका मुझे आभास हुआ है. लेकिन में समाजिकता पर बात करना चाहता हूँ, अपने परिवार से लेकर लोगो को समझाना चाहता हूँ लेकिन में समझा नही पा रहा हूँ, कैसे वो ज्ञान प्राप्त करूं जिससे में तर्क-वितर्क करने के काबिल हो जाऊ, वो कौन सा स्थान है जंहा मुझे ऐसा ज्ञान मिलेगा.
मेने उसे कहा की;
बहुत आसान है आप अपने गली मोहल्ले या अपने समाज के ‘अवसरवादी वर्ग’ से इसकी शुरुआत कीजिये. आप उनसे तर्क-वितर्क कीजिए, आपको अपने आप ही सत्यता का पता चल जायेगा, आपके समाज की वर्तमान कमजोर जड़ दिखेगी, आपको वो लोग दिखेंगे जिन्हें ‘बाबा साहब यह कहकर गये थे की इस कारवा को पीछे जाने मत देना”. जो भी तर्क वो दे उसका सूक्ष्म रूप से अवलोकन कीजिए, और उनके तर्कों का शोषित वर्ग की वर्तमान की स्तिथि व उनकी इस दुर्दशा के इतिहास का सहारा लेकर किसी निष्कर्ष पर पहुचने की कोशिस कीजिये. आप आपने आप ही यह पता लगा लेंगे की ‘कमी’ कंहा पर है और कंहा से शुरुआत करनी है. बस आप अपना नजरिया ‘अवसरवादीओ से विपक्ष’ का रखे.
उसकी एक बात मुझे काफी अच्छी लगी जब उसने यह कहा की;
“आप सही कह रहे है क्युकी में भी पहले अवसरवादी वर्ग में ही शामिल था, जब से फेसबुक पर काफी मित्रो के तर्क-वितर्क देखे तब से में भी धार्मिक स्थान की जगह ‘बाबा साहब’ की शिक्षा पर आधारिक ‘शोषित वर्ग के विकास’ पर ध्यान देने लगा हूँ, शायद में भी उन अवसरवादी वर्ग में से कुछ का ध्यान ‘समाजिकता पर मोड़ सकूं जैसे में आ गया”