बहुजनों के मसीहा मान्यवर कांशीराम


“मैं कभी शादी नहीं करूंगा, खुद के लिए कभी कोई संपत्ति नहीं जोडूंगा…मैं कभी घर वापस नहीं लौटूंगा, मैंने अपनी पूरी जिंदगी फूले-अंबेड़कर के आंदोलन को समर्पित कर दी है”…मान्यवर कांशीराम के इस विचार पर हजारों नौजवानों ने अपनी जिंदगी को सामाजिक परिवर्तन के लिए झोंक दिया…1973 में डी.के. खापर्डे साहब के साथ मिलकर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछडे व इन समुदायों के धर्मांतरित अल्पसंख्यकों के कर्मचारियों का संगठन “बामसेफ” बनाया…1982 में चमचा युग किताब प्रकाशित की जिसने खूब शौहरत बटौरी…6 दिसंबर 1978 को दिल्ली में बामसेफ को अखिल भारतीय स्वरूप दिया गया…इसके साथ ही बुद्दीस्ट शोध केंद्र (बीआरसी) और “ठाकुर-ब्राह्मण-बनिया छोड़, बाकी सब हैं डीएस-4” के नारे के साथ दलित शोषित समाज संघर्ष समिति(डीएस-4) की स्थापना की…बाबा साहेब अंबेड़कर की जयंति के मौके पर 14 अप्रेल 1984 को बहुजन समाज पार्टी(बीएसपी) का गठन किया…वे हमेशा बहुजनों की बात करते, वे बहुजनों के सच्चे नेता थे…मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू करवाने का श्रेय भी मान्यवर कांशीराम को ही जाता है…मंडल कमीशन के लिए प्रधानमंत्री वीपी सिंह तैयार नहीं थे, तो कांशीराम ने ही देवीलाल को आगे करते हुए कहा ‘देवीलाल आगे बढ़ो, हम तुम्हारे साथ हैं’…तब तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह को मजबूरन मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करनी पड़ी थी…कांशीराम बहुजन समाज के मसीहा थे…बहन मायावती ही वे पहली नेता हैं, जिन्होंने लोकसभा में मंडल कमीशन की मांग को सबसे पहले उठाया…मंडल कमीशन की मांग और आंदोलन में शामिल 90 फीसदी लोग अनुसूचित जाति के थे…कांशीराम का लक्ष्य 6 हजार पिछड़ी जातियों को जोड़कर बहुजनों के हाथों में सत्ता की चाबी थमाना था…कांशीराम ने फंड जुटाने के लिए लोगों से एक टाइम का खाना मांगा…उन्होंने लोगों को सामाजिक आजादी देने का वादा किया और कहा कि हमें जालिमों की कुर्सी हरगिज़ मंजूर नहीं…उन्होंने वोट के साथ नोट मांगना शुरू किया…बैनर और अन्य संसाधनों में विरोधियों के मुकाबले में वे बहुत कमजोर हैं, तो उन्होंने दीवारों पर वॉल पेंटिंग का तरीका अपनाया…उन्होंने तकरीबन 500 पेंटरों की फौज तैयार कर दीवारों पर हाथी बनवाए…उनका मानना था कि हाथ से हाथी बनाना आसान है क्योंकि हमारे पास हाथ हैं और वॉल पेंटिंग से लोगों को अधिक संख्या में जागरुक कर जोड़ा जा सकता है…1965 से लेकर 2003 तक जमकर आंदोलन चलाने वाले मान्यवर कांशीराम 9 अक्टूबर 2006 को बहुजन वर्ग के हाथों में राजनैतिक विरासत सौंपकर दुनिया को हमेंशा के लिए अलविदा कह गए…15 मार्च 1934 को पंजाब में जन्में मान्यवर कांशीराम आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं…आज उनके जन्मदिन के अवसर पर उनके जीवन संघर्षों को याद करते हुए बहुजन वर्ग खुशियां मना रहा है। – सत्येन्द्र मुरली (पत्रकार)

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