कांशी तेरी नेक कमाई … तूने सोती कौम जगाई !!

कांशी तेरी नेक कमाई … तूने सोती कौम जगाई !!

बाबासाहब अपने समाज के पढे़ लिखे लोगो की भूमिका से नाखुश थे, वे जीवन के अंतिम दिनों में इसे लेकर बहुत भावुक भी हो गए थे यहाँ तक की मार्च 1956 में आगरा की एक सभा में उनकी आँखे भी भर आई. इसी सभा में ही उन्होंने कहा था की श्मुझे मेरे समाज के पढे लिखे लोगो ने धोखा दियाश् ओर बाबा साहब के जाने के बाद यही हुआ. जिनका काम था बाबा साहब की विचारधारा को जन-जन तक पहुँचाना वह कोंग्रेस की गोद में जा बैठे. पूरी तरह से बाबा साहब को सिमित कर दिया गया उन्हें भुला दिया गया. आरक्षण के लाभ से नौकरिया व उच्च पद पाने वाला शिक्षित वर्ग ने भी बाबा साहब की अनदेखी की. इसी अंधकार में मान्यवर कांशीराम का आगमन होता है, कांशीराम जिन्हें उनके चाहने वाले प्यार से साहब या आदरवश मान्यवर कहते हैं. वह अभी तक के एक ऐसे नायक रहे हैं, जिनका समग्रता से आंकलन होना बाकी है. अस्सी और नब्बे के दशक में उनका व्यक्तित्व अनबुझ पहेली की तरह रहा. परंतु नब्बे के दशक के बाद से उन्होंने भारतीय राजनीति को अकेले दम पर एक नई दिशा दी. उन्होंने गरीबों, मजलूमों, अशिक्षित, ग्रामीण अंचल के लोगों का एक ऐसा आंदोलन किया, जो पढ़े-लिखे शहरी तथा पूंजीपतियों द्वारा समर्थित दलों को मुंह चिढ़ाता है. मान्यवर कांशीराम का व्यक्तित्व साधारण मनुष्य का था. जो कि एक सामान्य समाजिक परिवेश से उठकर भारतीय राजनीति में सूर्य की तरह चमके. वह गांधी नेहरू, टैगोर, सर्वपल्ली राधाकृष्णन आदि नेताओं की तरह द्विज(उच्च जाति से) नहीं थे. और न ही उनको ब्राह्मणवाद की सामाजिक संरचना का सपोर्ट था. इसके विपरीत वो मनुवाद एवं ब्राह्मणी सामाजिक व्यवस्था के घोर निंदक रहे. उन्होंने अपनी इसी सोच के तहत भारतीय समाज को मनुवादियों(ठाकुर, ब्राह्मण, बनिया 15ः) और बहुजनों (ैब्ए ैज्ए व्ठब् तथा धार्मिक अल्पसंख्यक 85:) के दो फाड़ में बांट दिया. उन्होंने बताया की बहुजन इस देश की जनसँख्या का 85ः है जो जाति के नाम सताया हुआ शोषित है तथा सदियों से देश के साधन संसाधन सत्ता से वंचित है वही दूसरी ओर मनुवादी है जो इस देश की जनसँख्या का मात्र 15: है ओर देश के शत प्रतिशत साधन संसाधन सत्ता पर काबिज है. इसीलिए उन्होंने यह नारा दिया, श्जिसकी जितनी संख्या भारी-उसकी उतनी भागेदारीश् तथा श्तिलक तराजू ओर तलवार, इनको मारो जूते चारश् वह न ही विदेश में पढ़े थे, न ही बहुत बड़े बुद्धिजीवी थे और न ही एक कुशल वक्ता. परंतु एक अपार दूरदृष्टि वाले संगठनकर्ता थे.
वह अपने श्रोताओं को जानते थे अतः अत्यंत सरल भाषा का प्रयोग कर, लाखों-लाखों की जनता को मंत्रमुग्ध कर दिया करते थे. मान्यवर ने बहुजन समाज को जोड़ने के लिए पहली बार कुछ नवीन प्रयोग किए. सर्वप्रथम उन्होंने एक सशक्त एवं ईमानदार संगठन का निर्माण किया और कैडर के रूप में अनुशासित सिपाही तैयार किए. और इसके पश्चात अपना आंदोलन अपनी मदद से ही चलेगा, जैसी धारणा उनके मन में पैदा की. फिर क्या था, लोगों का विश्वास जीता और संगठन आगे निकल पड़ा. मान्यवर का दूसरा प्रयोग बहुजन समाज के खोए हुए इतिहास का पुर्ननिर्माण था. उन्होंने तार-तार कर बहुजन समाज के एक वृहत इतिहास की चादर बुनी, जिसमें उन्होंने अपने इस आंदोलन को बुद्ध से शुरू होते हुए रैदास, कबीर, गुरु घासीदास, जोतिबा फुले, माता सावित्रीबाई फुले, शाहूजी महाराज, गाडगे बाबा, नारायणा गुरु, बाबासाहेब अंबेडकर तथा पेरियार आदि महापुरुषों को शामिल किया. इन सभी महापुरुषों के आंदोलनों को उन्होंने अपनी बहुजन विचारधारा का आधार बनाया और संगठन में उनके द्वारा किए गए आंदोलनों का बार-बार उदघोष कर मायूस, अत्याचार से निढ़ाल एवं हजारों वर्ष से सतायी हुई बहुजन जनता में भरपूर जोश भरा. जिससे कि देखते ही देखते 1971 में बना पहला संगठन ठ।डब्म्थ् (अखिल भारतीय पिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदायों कर्मचारी महासंघ), 1978 तक बामसेफ के रूप में अखिल भारतीय हो गया. यह पहला कर्मचारी संगठन था जो उन्होनें अखिल भारतीय स्तर पर बनाया. बामसेफ ‘पे बैक टू सोसायटी’ यानि समाज का कर्ज उतारने के लिए बना था. यह गैर राजनैतिक, गैर विरोधी एवं गैर धार्मिक संगठन था. लेकिन इस संगठन से मान्यवर संपूर्ण समाज के दुख एवं दर्द को दूर नहीं कर सकते थे. इसलिए उनको बहुजन समाज के सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक उत्थान के लिए एक संगठन बनाना पड़ा. और यह संगठन 1981 में क्ै-4 (दलित शोषित समाज संघर्ष समिति) के रूप में स्थापित किया गया. इस संगठन के माध्यम से मान्यवर ने लोगों को राजनीति के कुछ आरंभिक मंत्र सिखाए और इसकी सफलता को देखते हुए उन्होंने 14 अप्रैल 1984 में बहुजन समाज पार्टी (BSP) का गठन किया.
इस तरह मान्यवर ने बाबा साहब का वह सपना पूरा किया जिसके लिए बाबा साहब अपने लोगो से कहा करते थे की श्जाओ अपनी घर की दीवारों पर लिख दो, तुम्हे इस देश की शासक कर्ता जिमात बनना है।श् अपनी जनता को श्वोट हमारा-राज तुम्हारा, नहीं चलेगा-नहीं चलेगाश् नारा देकर अपने वोट का अपने हक में इस्तेमाल करना सिखाया. फिर क्या था, सत्ता के दहलीज पर उन्होंने पहली बार 1993 में दस्तक दी. और फिर 1995 में एक दलित महिला को भारत के जनसंख्या के आधार पर सबसे बड़े राज्य की मुख्यमंत्री बनाकर भारतीय राजनीति में ही नहीं बल्कि विश्व की राजनीति में अजूबा कर दिया.
इस तरह मान्यवर ने बाबा साहब का वह सपना पूरा किया जिसके लिए बाबा साहब अपने लोगो से कहा करते थे की “जाओ अपनी घर की दीवारों पर लिख दो, तुम्हे इस देश की शासक कर्ता जिमात बनना है“ यह मान्यवर के आन्दोलन का ही परिणाम था की सालो तक जिस डॉ आंबेडकर को भुला दिए गया वह डॉ आंबेडकर इतिहास की धूल झाड़ फिर उठ खडे़ हुए. नतीजतन तत्कालीन भारत सरकार ने 1990 में बाबा साहब को भारतरत्न ने नवाजा, संसद परिसर ने बाबा साहब की विशाल प्रतिमा लगाई गई. 9 अक्टूबर 2006 को इस दुनिया से विदा लेने से पहले मान्यवर ने तीन बार उत्तर प्रदेश में बहुजनो की बहन मायावती को तीन मुख्यमंत्री तथा अपनी सरकार बनवाई साथ ही ठैच् को इस देश की तीसरी सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी बनाकर बहुजनो को सुपूर्त की।
एक आदमी फुले, आंबेडकर, पेरियार के विचारों को लेकर चलता है, संगठन के स्तर पर लगभग शून्य से शुरू करता है और चंद साल में वह देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बना देता है। दलित आदिवासी पिछडो को सत्ता तक पहुँचाने वाले तथा बाबा साहब के सपने को सच करने वाले ऐसे थे मान्यवर कांशीराम… मान्यवर साहेब कांशीराम जी को कोटि कोटि नमन…
कांशीराम जी की नेक कमाई, तुमने सोती कौन जगाई।
बहुजन को तुमने बात यह समझाई, 85 प्रतिशत है भाई-भाई।
ऐ वक्त मेरा एक काम करदे, वह दौर फिर हमारे नाम करदे।
न हों फिर आंबेडकर पैदा तो, हर गाँव में एक कांशीराम करदे..।।
तिलक तराजू ओर तलवार, इनको मारो जूते चार।
जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागेदारी।
वोट से लेंगे च्ड- ब्ड , आरक्षण से लेंगे ैच् -क्ड
वोट हमारा राज तुम्हारा, नही चलेगा- नही चलेगा।
जो जमीन सरकारी है, वो जमीन हमारी है।
बाहर निकलो मकानों से, जंग लड़ो बेईमानों से
बच्चा- बच्चा भीम का, कांशीराम की टीम का।
लेखक रू – प्रोफेसर विवेक कुमार (साभार- दलित दस्तक )